जाने-माने मॉडल, ऐथलीट व ऐक्टर इन दिनों रिऐलिटी शो '' को जज कर रहे हैं। जज के इस पैनल में मिलिंद के साथ मलाइका अरोड़ा और फैशन डिजाइनर मसाबा गुप्ता भी हैं। इस मुलाकात में मिलिंद हमसे मॉडलिंग ट्रेंड और अपनी निजी जिंदगी पर ढेर सारी बातचीत करते हैंः आपके नजरिये से एक सुपर मॉडल के अंदर क्या क्वालिटीज होनी चाहिए?मुझे लगता है कि अपने शो पर हम जज सरप्राइज होना चाहते हैं। हम इसे लेकर कोई अवधारणा नहीं बनाना चाहते कि मॉडल पतली, लंबी या किसी विशेष रंग की होनी चाहिए। हम यहां अलग तरह की खूबसूरती की तलाश में हैं। ऐसी खूबसूरती, जो आपके अंदर समाई हो और आपकी पर्सनैलिटी में नजर आती हो। हमने पूरी दुनिया में ऐसे सेलिब्रिटीज देखे हैं, जो पांरपरिक खूबसूरती के ढांचे में नहीं होते हैं। लेकिन उनके अंदर एक स्पेशल बात होती है और उसी को वे पूरी सच्चाई के साथ पब्लिक के बीच लेकर आते हैं। पब्लिक उसे देखती है और उसकी सराहना भी करती है। दुनियाभर में खूबसूरती के मापदंड बदल रहे हैं। लेकिन आज भी बॉलिवुड खूबसूरती के ट्रेडिशनल ढर्रे पर चल रहा है। आपकी राय?सही बात है, इंडस्ट्री आज भी इससे निकल नहीं पाई है क्योंकि यहां बहुत पुराने लोग हैं। जबकि सच यही है कि दुनिया बदल रही है। खूबसूरती के मायने बदल रहे हैं और आगे भी बदलते रहेंगे। हम सुपरमॉडल के जरिए इसी बदलाव को एक्सप्लोर करना चाहते हैं। हम इसी खोज में हैं कि किस तरह के बदलाव आए हैं और क्या बदलाव किए जाने चाहिए। जरूरी नहीं है कि हम आज इस राह में सक्सेसफुल हो जाएं। यकीनन फ्यूचर में बदलाव तो जरूर आएगा। मैंने आज से तीस साल पहले मॉडलिंग की शुरूआत की थी। उस वक्त से आज के वक्त में जमीन-आसमान के बदलाव आए हैं। हमें उस बदलाव को सेलिब्रेट करना चाहिए न कि अपनी चीजों पर अड़े रहना है। अंकिता (पत्नी) ने कैसे आपकी जिंदगी को बदला है?बदला नहीं है, कॉम्प्लिमेंट किया है। हां, बदला इस बात पर है कि अब मैं कोई भी डिसीजन लेता हूं, तो उन्हें भी शामिल करता हूं। पहले डिसीजन लेने के दौरान किसी की परवाह नहीं किया करता था। मैं अब यह सोचता हूं कि अंकिता को कैसा लगेगा और कैसे मैं अपनी चीजों में उसे शामिल कर सकूं। सोसायटी की यह बहुत बड़ी विडंबना है। एक तरफ महिलाएं अपनी पसंद की फील्ड पर राज कर रही हैं। वहीं दूसरी ओर उन्हें अपने मूल अधिकार को लेकर लड़ने की नौबत आती है। आप क्या कहना चाहेंगे?जब-जब समाज में विकास हुआ है, तब-तब हमारी सोसायटी तनाव में आ जाती है। आज से 10 साल पहले, जो समाज में महिलाओं की जगह थी, वह आज के दौर में बिलकुल बदल चुकी है। जब ट्रेडिशन बदल रहा होता है, तो लोग उस पर झगड़ने भी लगते हैं क्योंकि उन्हें बदलाव पसंद नहीं है। बदलाव तो प्रकृति का नियम है न! हमें इस बात के लिए तैयार होने की जरूरत है कि हमारे लिए बेस्ट क्या है। पिंकेथॉन का आइडिया कैसे आया?मैंने पिछले कुछ सालों में नोटिस किया कि हमारे यहां लोग हेल्थ और फिटनेस को लेकर सजग हुए हैं। यह हमारे कल्चर में नहीं था। महिलाएं तो इसमें और भी पीछे रह जाती हैं। उन्हें कभी इन सब चीजों के लिए प्रेरित नहीं किया जाता है। यह केवल हमारे देश की ही बात नहीं है बल्कि कई और देशों में भी यह धारणा है कि एक्सरसाइज, रनिंग यह सब तो पुरूषों के लिए है। हमारे यहां रनिंग इवेंट्स होते हैं, वहां हजारों की संख्या में मर्द होते हैं। ऐसे में महिलाएं इस डर से भी नहीं आती हैं कि उन्हें सेफ महसूस नहीं होता है। इसके अलावा हमारे यहां की कई महिलाएं हैं, जो स्पोर्ट्स क्लोथ में सहज नहीं होती हैं, उन्हें साड़ी और सलवार में अच्छा लगता है। हम पिंकेथॉन के जरिए उनकी सारी बाधाओं को दूर करने की कोशिश कर रहे हैं। आपको साड़ी पहन कर दौड़ना है, दौड़ो, कोई नहीं हंसने वाला है। आपके छोटे बच्चे हैं, तो उन्हें साथ लेकर दौड़ें। आप देख नहीं सकती हैं, आपको कैंसर है, आपकी उम्र ज्यादा है, कुछ भी समस्या हो, कोई एक्सक्यूज नहीं चलने वाला। हमारी यही कोशिश है कि कोई भी महिला छूटे नहीं। बढ़ती रेप की घटनाओं से डरकर कई पैरंट्स लड़कियों को लेकर ओवर प्रोटेक्टिव हुए हैं?हम डर सकते हैं। अगर हम डरकर बैठ जाएंगे तो कुछ बदलाव ही नहीं आएगा। हमें निडर होने की जरूरत है, लेकिन साथ ही महिलाओं को केयरलेस नहीं होना चाहिए। उन्हें अपनी मान्यताओं पर दृढ़ विश्वास होना चाहिए और अपनी सच्चाई को खोना नहीं चाहिए। उन्हें समझना होगा कि वे आखिर क्या चाहती हैं। आपको खुद की रक्षा करनी होगी। ऐसा कोई समाज नहीं बना है जहां आपको खुद की रक्षा न करना पड़े क्योंकि हर चीज आपकी इच्छा अनुसार हो, यह जरूरी नहीं। चीजें समाज के हिसाब से चलती हैं, ऐसे में खुद को समाज संग सामंजस्य बनाते हुए सक्सेस की ओर जाना है।
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