किसी ने सच ही कहा है कि कॉमिडी इज वैरी सीरियस बिजनस। वाकई कॉमिडी हर किसी के बस की बात नहीं। आपने अगर कहानी की डोर में किरदारों को कॉमिक अंदाज में नहीं ढाला, तो समझो आप हंसाने में नाकाम। यही निर्देशक नवजोत गुलाटी की '' में हुआ है। फिल्म भले कॉमिडी जॉर्नर की हो, मगर फिल्म में आपको हंसी के पल कम और सुपरफिशियल और फोर्स हास्य की झलकियां ज्यादा नजर आती हैं। कहानी: फिल्म बहुत ही कॉमिक अंदाज में शुरू होती है, जहां दिल्ली में बसे दो परिवार अगल-बगल में रहते हैं, मगर उनके बीच कड़ी दुश्मनी है। कॉलेज के जमाने में पिंकी (पूनम ढिल्लन) और लाली (सुप्रिया पाठक) के बीच भले दांत-काटी दोस्ती रही हो, मगर अब दोनों एक-दूसरे को देखकर कटखनी बिल्ली की तरह काटने को झपटती हैं। इन दोनों की दुश्मनी का निर्वाह इनका परिवार भी करता है। पिंकी और लाली इस बात से अंजान हैं कि उनके बच्चे पुनीत खन्ना () और सांझ भल्ला () एक लंबे अरसे से एक-दूसरे से प्यार करते हैं। कहानी में ट्विस्ट तब आता है, जब सांझ द्वारा पुनीत को शादी के लिए प्रपोज किये जाने के बावजूद वह डर कर हां नहीं कर पाता। दुखी सांझ की शादी कहीं और तय हो जाती है और उसकी राइवलरी में लाली अपने बेटे पुनीत का रिश्ता कहीं और तय कर देती है। इसी बीच पुनीत और सांझ को अहसास होता है कि वे एक-दूसरे के लिए ही बने हैं। बस फिर क्या? वे अपनी-अपनी होनेवाली शादियों को को तोड़ने की कोशिशों में लग जाते हैं। रिव्यू: निर्देशक नवजोत के निर्देशन की समस्या यह है कि उन्होंने बहुत ही थिन लाइन वाली स्टोरी चुनी है, जिसे वे विस्तार नहीं दे पाए। इसी कारण इंटरवल तक कुछ होता ही नहीं है। कहानी बहुत ही मंथर गति से आगे बढ़ती है। फिल्म में कुछ हंसाने वाले वन लाइनर्स हैं, मगर वे ज्यादा होल्ड नहीं कर पाते। इंटरवल के बाद कहानी थोड़ी आगे बढ़ती है, मगर तर्कहीन और बचकाने दृश्य फिल्म को किसी नतीजे पर नहीं ले जा पाते। पिंकी और लाली की दुश्मनी का कारण जब क्लाईमैक्स में खुलता है, तो दर्शक के रूप में ठगे जाने का अहसास होता है। फिल्म में गानों की भरमार कहानी को कॉम्प्लिमेंट करने के बजाय रुकावट पैदा करती है। सनी सिंह ने पुनीत खन्ना के रूप में पूरी कोशिश की है कि वे अपने किरदार में असर पैदा करें। सांझ के रूप में सोनाली ग्लैमरस जरूर लगी हैं, मगर अपनी भूमिका के सही सुर को नहीं पकड़ पाई हैं। सनी और सोनाली इससे पहले 'प्यार का पंचनामा 2' में नजर आए थे, मगर यहां दोनों के बीच केमेस्ट्री नदारद है। पूनम ढिल्लन और सुप्रिया पाठक को फिल्म में मोगम्बो और गब्बर का खिताब दिया गया है, मगर वैसी कोई बात उनके किरदारों में नजर नहीं आती। असल में उनके किरदारों को सही तरीके से गढ़ा नहीं गया है। इन दोनों अभिनेत्रियों का अनुभव इनकी अभिनय अदायगी में झलकता तो है, मगर लाउड और मेलोड्रामा होने के कारण वह प्रभावी नहीं रहता। क्यों देखें: आप इस फिल्म को नहीं देखेंगे, तो आपका कोई नुकसान नहीं होगा।


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