'तलवार' और 'राजी' जैसी फिल्मों की संवेदनशील निर्देशक अपनी फिल्म '' को लेकर चर्चा में हैं। मेघना से हुई एक खास मुलाकात में उन्होंने फिल्म और समाज के वर्तमान हालात पर खुलकर चर्चा की: ऐसिड विक्टिम सर्वाइवर लक्ष्मी की कहानी को कहने का विचार आपके मन में कब आया?यह कहानी मैंने 2012 में लिखी थी। 'तलवार' के बाद जब मैं सब्जेक्ट ढूंढ रही थी, तो दिमाग में यही था कि समाज और रोजमर्रा की घटनाओं से कुछ लिया जाना चाहिए। उस वक्त भी तेजाबी हादसे काफी तेजी से रिपोर्ट होते रहते थे, तो उस वक्त भी मेरा ध्यान गया उस पर कि ये चीज हमारे समाज में व्याप्त है। ये बार-बार हो रही है। लगातार हो रही है, मुझे लगा कि सबको पता है, मगर इस पर रौशनी कौन डालेगा? आपके लिए सबसे बड़ी चुनौती क्या थी?लिखते समय सबसे बड़ी चुनौती यही थी कि मेरी किरदार बेचारी न लगे, क्योंकि लक्ष्मी बेचारी नहीं है। उसके साथ ये हादसा होता है। वह टूटती भी है, बिखरती भी है फिर खुद को समेटती भी है और खड़ी होती है। उस जज्बात को लेकर आना जरूरी था। दूसरी चुनौती थी कि मुझे लगा कि अगर मैं इस विषय पर फिल्म ला रही हूं और चाहती हूं कि लोग देखें, तो मैं फिल्म को ऐसा दर्शाऊं कि लोग आंखें बंद न करें। इस तरह बनाऊं कि लोग चौंकें, स्तब्ध हों, मुंह न फेरें। 'छपाक' के बाद ऐसिड विक्टिम सर्वाइवर्स की स्थिति में कोई अंतर आएगा?मैं चाहती तो यही हूं कि बदलाव आए, लोग सोचने पर मजबूर हों। जाहिर है, इसी उद्देश्य के साथ फिल्म बनाई गई है। मगर कई बार आप अपनी मन्नत को दिल में रखकर मांगते हैं, उसे जुबां से जाहिर नहीं करते, क्योंकि आपको डर लगता है कि कहीं वो अधूरी न रह जाए, तो मेरा हाल भी इस वक्त ऐसा ही है। मैं दिल की मन्नत को जुबां पर नहीं लाना चाहती। क्या लक्ष्मी के रोल के लिए दीपिका ही आपकी पहली पसंद थी या कोई और?जब स्क्रिप्ट लिखते हैं, तो आपके जहन में उस किरदार को लेकर कलाकार घूमने लगते हैं। मैंने लक्ष्मी की ऐसिड अटैक से पहले की तस्वीरें देखीं थीं। मुझे पता है, वह कैसी लगती थीं, मुझे पता है लक्ष्मी अभी कैसी लगती हैं? समानता दीपिका से सबसे ज्यादा थी। मेरा स्टार्टिंग पॉइंट अपनी फिल्म को कास्ट करने को लेकर होता है। कैरेक्टर कलाकार की फिजिकैलिटी से मैच करे। 'राजी' में 19 साल की कश्मीरी लड़की का किरदार आलिया के अलावा और कौन निभा सकता था? कास्टिंग बहुत अहम होती है और जब परफैक्ट होती है, तो फिल्म में आप खास तरह के परफॉर्मेंस की उम्मीद करते हैं। इस रोल के लिए मेरे जहन में दीपिका के अलावा कोई और था ही नहीं। एक औरत होने के नाते आपने क्या कभी हीनता महसूस की है?मैं खुद को खुशकिस्मत मानती हूं, ऐसा कभी मेरे साथ हुआ नहीं है| शायद इसका एक कारण ये है कि मैं खुदको ऐसी परिस्थितियों में डालती ही नहीं। ऐसिड अटैक के अलावा और कौन-से ऐसे महिला प्रधान मुद्दे है जिनपर खुल कर बात होनी चाहिए?बात सिर्फ महिला मुद्दों की नहीं है। हम अगर पूरे समाज पर नजर डालें तो पता चलेगा कि हमारे समाज का चरित्र उतना साफ नहीं है, जितना कुछ साल पहले था। जो समस्याएं हैं, उन्हें जेंडर के आधार पर बांटना गलत होगा। हम लोग कई मुद्दों पर जूझ रहे हैं। सुबह पौ फटने से पहले का जो वक्त होता है, उस वक्त सबसे ज्यादा घना अंधेरा होता है, तो इस वक्त मैं ऐसे ही देख रही हूं। उम्मीद करती हूं कि सवेरा बस होने को है। पर क्या कहना चाहेंगी?जैसा कि मैंने कहा कि हमारा पूरा देश इस वक्त कई मुद्दों पर जूझ रहा है। मैं किसी एक खास फिलॉसफी पर अपना मत प्रकट नहीं करना चाहूंगी। मैं अपनी आइडियॉलजी सबको नहीं दिखाती। मैं कोशिश करती हूं कि मेरा काम वो दिखाए। लेकिन मुझे अपने देश की फिक्र है। कहते हैं न कि रगें दुख जाती हैं, तो इस वक्त रगें दुख रही हैं। इन्हें थोड़े से मरहम की जरूरत है।
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