गंगूबाई काठियावाड़ी, यह नाम इन दिनों चर्चा में है। वजह है संजय लीला भंसाली की इसी नाम से बन रही फिल्म, जिसमें आलिया भट्ट लीड रोल में है। बुधवार को फिल्म का टीजर रिलीज हुआ, जिसमें आलिया का धमक भरा अंदाज देख हर कोई उनकी तारीफ कर रहा है। फिल्म की कहानी मुंबई माफिया की क्वीन कही जाने वाली गंगूबाई कोठेवाली की असल कहानी पर आधारित है। उसे लोग गंगूबाई काठियावाड़ी भी बुलाते थे। मुंबई अंडरवर्ल्ड की दुनिया में गंगूबाई ऐसा नाम रहा है, जिसके कोठे पर बिना उसकी मर्जी के बड़े-बड़े गैंगस्टर भी कदम नहीं रखते थे। वह सेक्सवर्करों के हित में भी काम करती थी और उनके लिए भी। गंगूबाई का कद का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि आजाद मैदान में उसके भाषण को 60 के दशक में हर बड़े अखबार ने जगह दी थी। प्यार में धोखा और शोषण की दर्दनाक कहानी संजय लीला भंसाली की फिल्म 'गंगूबाई काठियावाड़ी' (Gangubai Kathiawadi) मशहूर लेखक और पत्रकार एस हुसैन जैदी की किताब 'माफिया क्वीन्स ऑफ मुंबई' पर आधारित है। एक पुरानी कहावत है कि कोई इंसान बुरा नहीं होता, उसे बुरा बनाते हैं उसके हालात। गंगूबाई की कहानी भी ऐसी है। वह तो गंगा थी। धोखे और शोषण ने उससे उसकी मासूमियत छीन ली। उसके भीतर एक गुबार भर दिया। देखते ही देखते गुजरात की गंगा हरजीवनदास कब गंगूबाई बन गई। कब वह मुंबई के सबसे नामचीन वेश्यालय की मालकिन बन गई, यह न उसे पता चला, न ही मुंबई माफिया को और न ही पुलिस को। गुजरात की रहने वाली थी गंगा हरजीवनदास गंगूबाई का असली नाम गंगा हरजीवनदास था। वह गुजरात के काठीवाड़ की रहने वाली थी। एक संपन्न परिवार में पैदा हुई गंगा का सपना था कि वह बड़ी होकर ऐक्ट्रेस बने। माता-पिता ने पालन-पोषण भी बड़े लाड-प्यार से किया। लेकिन कॉलेज के दिनों में गंगा को प्यार हो गया। प्यार होना गलत नहीं था। लेकिन 16 साल की उम्र में उसे जिससे प्यार हुआ, वह गलत था। शायद गंगा की जिंदगी की सबसे बड़ी भूल। गंगा को उसके पिता के अकाउंटेंट से मोहब्बत हुई थी। नाम था रमनिक लाल। पति ने 500 रुपये के लिए वेश्यालय को बेचा गंगा के परिवार वाले इस प्यार के खिलाफ थे। गंगा को ऐक्ट्रेस भी बनना था और प्यार भी पाना था। इसलिए वह रमनिक के साथ भागकर मुंबई आ गई। दोनों ने शादी कर ली। लेकिन इससे पहले कि गंगा मुंबई की चकाचौंध में खुद को संभाल पाती, उसके दरिंदे पति रमनिक लाल ने उसे महज 500 रुपये में कमाठीपुरा के एक वेश्यालय को बेच दिया। वहां हर दिन गंगा के जिस्म का सौदा होने लगा। हालात के आगे मजबूर गंगा रोज रोती थी, बिलखती थी। खुद को और अपने प्यार को कोसती थी। गुंडे ने किया रेप, करीम लाला ने बनाया बहन साठ के उस दशक में कमाठीपुरा के इलाके में माफिया डॉन करीम लाला का सिक्का चलता था। एक बार करीम लाला के एक गुंडे की नजर गंगा पर पड़ी। उस वहशी ने गंगा का रेप किया। गंगा इंसाफ मांगने करीम लाला के पास गई और करीम लाला ने न सिर्फ इंसाफ किया, बल्कि गंगा को अपनी मुंहबोली बहन मान लिया। इस एक घटना ने गंगा की जिंदगी बदल दी और यहीं से गंगा के गंगूबाई काठियावाड़ी बनने की असली कहानी शुरू हुई। कमाठीपुरा में गंगूबाई बन गई 'गंगूमां' करीम लाला की बहन बनने का बाद गंगूबाई का कद बढ़ गया। वह कमाठीपुरा की कोठेवाली गंगूबाई बन गई। धीरे-धीरे कमाठीपुरा की पूरी कमान भी गंगूबाई के हाथ में आ गई। कोठा चलाना गंगूबाई का काम था। लेकिन वह नेकदिल थी, इसलिए सेक्स वर्कर्स के लिए वह ‘गंगूमां’ थी। बताया जाता है कि गंगूबाई ने अपने वेश्यालय में कभी किसी लड़की के साथ जबरदस्ती नहीं थी। वह उसी को कोठे पर रखती, जो अपनी मर्जी से आती थीं। गंगूबाई सेक्स वर्कस के अधिकारों के लिए एक आवाज बन गईं। गंगूबाई की इजाजत के बिना गैंगस्टर नहीं रखते थे कदम गंगूबाई की धमक ऐसी थी कि उसकी बिना इजाजत कोई भी गैंगस्टर या बड़े से बड़ा माफिया कोठे या कमाठीपुरा में कदम नहीं रखता था। गंगूबाई ने अपने जीवन में न सिर्फ सेक्स वर्कर्स के लिए काम किया, बल्कि वह अनाथ बच्चों की भी सहारा बनीं। गंगूबाई ने कई बच्चों को भी गोद लिया था। ये बच्चे या तो अनाथ थे या बेघर। इन बच्चों की पढ़ाई की जिम्मेदारी भी गंगूबाई की थी। आजाद मैदान का भाषण और पंडित नेहरू गंगूबाई ने सेक्स वर्कर्स के अधिकार और हितों के लिए अपनी आवाज खूब बुलंद की। मुंबई के आजाद मैदान में सेक्स वर्कर्स के हक में गंगूबाई का भाषण वहां के हर छोटे-बड़े अखबारों की सुर्खियां बनीं। हुसैन जैदी की किताब में यहां तक जिक्र है कि गंगूबाई उस समय देश के प्रधानमंत्री रहे जवाहरलाल नेहरू से मिली थीं।
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