'आशिकी', 'साजन', 'दीवाना', 'बाजीगर', '1942: ए लव स्टोरी', 'हम हैं राही प्यार के' और 'दामिनी' जैसी सैकड़ों फिल्मों को अपनी गायिकी से सजाने वाले और भारत की कई भाषाओं में 14000 से ज्यादा गानें गा चुके पद्मश्री की गायिकी के दीवाने 90 के दशक से अब तक हैं। उनकी सिंगिंग की इसी शोहरत और पर्सनैलिटी को यशराज फिल्म्स ने अपनी फिल्म 'दम लगाके हईशा' में कुछ ऐसा भुनाया कि पूरी फिल्म में कुमार सानू के गानें एक तरह की मुख्य भूमिका में थे। कुमार सानूलगातार 5 बार फिल्मफेयर का सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायक का पुरस्कार जीत चुके कुमार सानू ने नवभारतटाइम्स डॉट कॉम ( Navbharat Times Online ) के साथ हुई Exclusive बातचीत में कहा कि फिल्म इंडस्ट्री में गाना गाते हुए उन्हें 3 दशक यानी 30 साल से ज्यादा समय हो गया है, लेकिन अब तक उन्हें का सम्मान नहीं मिला है। नैशनल अवॉर्ड वालों को लगा होता कि वह लायक नहीं हैं। नैशनल अवॉर्ड के लिए बहुत ज्यादा जोड़-तोड़ की जाती है। बहुत लोचा और झोल है नैशनल अवॉर्ड में। नैशनल अवॉर्ड अबतक नहीं मिला मुझे कुमार सानू ( ) ने कहा, 'नैशनल अवॉर्ड मुझे अब तक नहीं मिला है... क्योंकि... नैशनल अवॉर्ड वाले शायद यह सोचते होंगे मैं National Awrds के लायक नहीं हूं, इसलिए मुझे नहीं दिया गया नैशनल अवॉर्ड।' लगातार 7 साल तक मिलना चाहिए था मुझे नैशनल अवॉर्ड आपके हिसाब से आपकी किन फिल्मों के गानों के लिए आपको नैशनल अवॉर्ड मिलना चाहिए था? इस सवाल के जवाब में कुमार सानू ने बताया, 'मुझे लगता है 1990, 91, 92, 93, 94, 95 और 1996 तक यानी लगातार 7 साल... हर साल मिलना चाहिए था नैशनल अवॉर्ड, इन 7 सालों में मेरे गानों से ज्यादा पॉपुलर और हिट कोई और सॉन्ग्स नहीं थे। इन सालों में कोई एक फिल्म या एक गाना नहीं थे, जिसके बारे में लगता कि नैशनल अवॉर्ड मिलना चाहिए।' अब आगे कभी नहीं मिलेगा मुझे नैशनल अवॉर्ड 'बहुत सारी फिल्मों के कई गानें थे, जो नैशनल अवॉर्ड डिजर्व करते थे। मैंने तो सोच लिया था कि नैशनल अवॉर्ड जब उस समय नहीं मिला, जब हर साल मेरी बहुत सी फिल्मों के बहुत से गानें हिट होते थे, तो अब क्या ही आगे मिलेगा। आज भी मुझे लगता है कि अब आगे कभी नहीं मिलेगा नैशनल अवॉर्ड। क्योंकि जिस समय नैशनल अवॉर्ड देना चाहिए था, उस समय तो उन लोगों ने दिया नहीं, अब क्या देंगे।' नैशनल अवॉर्ड मिलने का गर्व क्या होता है कैसे बताऊं मैं क्या हर साल नैशनल अवॉर्ड की घोषणा से पहले आपको अपने नाम का इंतजार होता था कि शायद इस साल आपको सरकारी सम्मान ( ) मिले ? सानू जवाब में कहते हैं, 'साल 1990 से 1996 तक जब नैशनल अवॉर्ड नहीं मिला, उसके बाद छोड़ दी उम्मीद, अब मुझे नहीं लगता आगे कभी मिलेगा, जिस समय देना चाहिए था, उस समय तो दिया नहीं, अब क्या देंगे। मैं 90 से 96 हर साल इंतजार करता था क्योंकि नैशनल अवॉर्ड एक अलग सम्मान है, सरकारी रिकॉग्नाइजेशन है, उसे पाने की एक अलग ही फीलिंग होती है। मैं क्या ही बोलूं आपको कैसे बताऊं नैशनल अवॉर्ड मिलने का गर्व क्या होता है।' नैशनल अवॉर्ड देने वाले शायद मुझसे गुस्सा थे 'कमाल की बात है, 30 साल से ज्यादा समय पूरा कर लिया, लेकिन ... लगता है मेरे ऊपर कोई-किसी बात पर गुस्सा था, मुझे नहीं पता ( हल्की हंसी के साथ अपनी बात कहते हुए ) खैर अब तो नैशनल अवॉर्ड की बात नहीं हैं, पब्लिक जितना चाहती है, वही अवॉर्ड है। अब ऐसा लगता है, जब जनता मुझे इतना ज्यादा चाहती है, मेरी इतनी बड़ी फैन फॉलोइंग है, ऐसे में नैशनल अवॉर्ड अब न भी मिले तो कोई बात नहीं है।' जब उत्साह खत्म हो गया, तब पद्मश्री सम्मान मिला था आप पद्मश्री जैसे भारत के सबसे उच्च नागरिक सम्मानों में से एक से सम्मानित हैं, क्या आपको लगता है पद्मश्री भी बड़ी देर से मिला? सानू कहते हैं, 'जब चार्म और उम्मीद खत्म हो गई थी तब जाकर पद्मश्री मिला, जिसका सम्मान बहुत ही बड़ी बात है, लेकिन यह जो अवॉर्ड और सम्मान होते हैं, यह समय के साथ, जब काम अच्छा किया जा रहा हो तब दिया जाना चाहिए, तो इसका एक अलग उत्साह होता है, आप और बेहतर करते हैं। मैं आज भी सरकार के उन लोगों को धन्यवाद कहता हूं, जिन्होंने मुझे पद्मश्री के लायक समझा और पद्मश्री से सम्मानित किया।' बहुत ज्यादा जोड़-तोड़ किया जाता है नैशनल अवॉर्ड में क्या आपको लगता है नैशनल अवार्ड में कोई पॉलिटिक्स होती है? 'पब्लिक सब जानती है कि जिनको भी नैशनल अवॉर्ड - पद्म सम्मान मिला है और मिलता है, वह सचमुच कितने डिजर्विंग हैं। मेरे बोलने से कोई भी फायदा नहीं है, नैशनल अवॉर्ड के लिए बहुत ज्यादा जोड़-तोड़ और हथकंडे ( मैन्युपुलेशन - Manipulation ) अपनाएं जाते हैं।' मेरा अचीवमेंट ज्यादा है, मैं चैलेंज कर सकता हूं कुमार सानू कहते हैं, 'जिनको भी नैशनल अवॉर्ड उस समय प्रदान किया गया मैं उनको चैलेंज करता हूं कि उनसे ज्यादा अचीवमेंट तो मेरा है, यह चैलेंज मैं आज भी कर सकता हूं, लेकिन मुझे अब यह इन सब झंझटों में नहीं पड़ना और उलझना है कि किसको नैशनल अवॉर्ड मिला, मिल रहा है।' नैशनल अवॉर्ड में झोल और लोचा होता है 'मैं तो जिंदगी में कभी नहीं सोचा था कि कोई अवॉर्ड मुझे मिलेगा, मैं कुमार सानू बड़ा सिंगर बनूंगा, तो जितना भी मुझे मिला मैं बहुत-बहुत ज्यादा खुश हूं। जब नैशनल अवॉर्ड को लेकर बातचीत होती है, तब मुझे लगता है कि कुछ न कुछ तो होता है अंदर, जिसकी वजह से ज्यादा अचीवमेंट वाले को अवॉर्ड नहीं मिलता है, जिसका कम अचीवमेंट है, उसको नैशनल अवॉर्ड मिल जाता है। कुछ न कुछ तो झोल-झाल या लोचा, कुछ न कुछ तो है।'
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