कहानी जैसा कि नाम से ही स्‍पष्‍ट है फिल्‍म की कहानी के केंद्र में इंदू है। उसका ठरकी बॉयफ्रेंड उसे छोड़ देता है। धोखा देता है। इंदू चिढ़ जाती है और तय करती कि वह डेटिंग ऐप और वन-नाइट स्‍टैंड के जरिए अब अपना प्‍यार तलाशेगी। लेकिन जिस शाम को रूमानी होना था, वह उसकी जिंदगी में भूचाल लेकर आता है। इंदू जिस लड़के के साथ डेट पर जाती है वह पाकिस्‍तानी है। समीक्षा गाजियाबाद के युवाओं से लेकर रिटायर हो चुके चाचाओं तक, गाजियाबाद के सोशल मीडिया पर एक ही चीज ट्रेंडिंग है और वह है इंदिरा गुप्‍ता (किरारा आडवाणी)। वह एक लूजर से प्‍यार करती है, जिसे उसके साथ सिर्फ सेक्‍स करना है। लेकिन इंदू ऐसी नहीं है। जब तक लड़का शादी के लिए सीरियस नहीं होगा, वह उसे कुछ करने नहीं देगी। लड़का इंदू को धोखा देता और वह इंदू की दोस्‍त सोनल (मल्‍लिका दुआ) के साथ चीट करते हुए पकड़ा जाता है। सोनल का भी अपना कैरेक्‍टर है, 'लड़के क्‍या चाहते हैं' इस बारे में सोनल से ज्‍यादा किसी को नहीं पता। सोनल अपनी दोस्‍त इंदू को समझाती है कि हर लड़का सिर्फ एक ही चीज के पीछे है और वह है सेक्‍स। अब इस कहानी में 'डिंडर' की एंट्री होती है। यह टिंडर की तरह ही एक डेटिंग ऐप है। सोनल अपनी दोस्‍त इंदू को मनाती है कि वह इस ऐप पर अपने लिए प्‍यार ढूंढ़े। इंदू अपनी दोस्‍त की सारी सलाहें मानती है और ऐप से उसे उसका डेट मिलता है समर (आदित्‍य सील)। समर उस वक्‍त इंदू के घर पहुंचता है, जब उसके घर पर वह अकेली होती है। इसी बीच शहर में एक खबर फैलती है कि कुछ पाकिस्‍तानी शहर में घुस आए हैं। इंदू को तब एहसास होता है कि उसने अपने घर मुसीबत बुलाई है। फिल्‍म अपने शुरुआती 10 मिनट में आपको मजेदार लगती है। लगता है कि आगे भी कुछ दिलचस्‍प होगा। कुछ सीन ऐसे हैं कि हमें लगता है कि यह कोई कॉमेडी वाली जासूसी थ्र‍िलर फिल्‍म है। लेकिन इससे पहले कि आप बतौर दर्शक कोई और ताना-बाना बुनते हैं, फिल्‍म का प्‍लॉट बिखरने लगता है। बच्‍चे से लेकर बूढ़ा तक, हर कोई इंदू को पाना चाहता है। मल्‍ल‍िका दुआ ने पर्दे पर एक बार फिर वही किया है, जो वह करती आई हैं। वह हिरोइन की बेस्‍ट फ्रेंड है। छोटे शहर की लड़की के किरदार में वह फिट बैठती हैं और बहुत हद तक हंसाती भी हैं। लेकिन जैसे ही इंदू के घर पर नया ड्रामा शुरू होता है पूरी कहानी वहीं फोकस हो जाती है। फिल्‍म की लीड जोड़ी यानी कियारा और आदित्‍य में कैमिस्‍ट्री कुछ जम नहीं रही है। यह बात आपको पूरे फिल्‍म में खलती है। हालांकि, आदित्‍य और कियारा दोनों ही आंखों को सुकून देते हैं। मतलब क्‍यूट हैं, सुंदर हैं। फिल्‍म एक जबरदस्‍ती का शर्टलेस सीन भी है। कियारा एक बार फिर पर्दे पर बहुत खूबसूरत दिखी हैं। लेकिन उनकी कॉमिक टाइम‍िंग अभी कच्‍ची है। फिर भी वह अपने क्‍यूट और चुलबुले अंदाज से रंग जमा लेती हैं। आदित्‍य के साथ भी ऐसा ही है। दोनों के रोल को लिखने में थोड़ी और मेहनत की जा सकती थी। फिल्‍म का संगीत सुनने लायक है। एक छोटे शहर में मिडिल क्‍लास फैमिली की कहानी है। लेकिन इस चीज को भी भुनाने में कमी रह गई। राकेश बेदी जैसे सीनियर ऐक्‍टर भी फिजूल में खर्च किए गए हैं। कॉमेडी और एंटरटेनमेंट की बात हो तो अक्‍सर लॉजिक की परवाह नहीं की जाती। लेकिन समस्‍या यह है कि राइटर-डायरेक्‍टर अबीर सेनगुप्‍ता की कहानी बुरी तरह गच्‍चे खाती है। कई मौकों पर यह मूर्खता से भरी हुई है। उदाहरण के लिए फिल्‍म में इंदू का कैरेक्‍टर भी खुद में कंफ्यूज है कि उसे बिंदास और बेबाक बनना है या 'लोग क्‍या कहेंगे' की चिंता करनी है। पाकिस्‍तानी को बुरी तरह कोसने से लेकर, बीच बचाव वाला रुख भी अपनाया गया है। कुल मिलाकर 'इंदू की जवानी' कई आयामों तक पहुंचने की कोश‍िश तो जरूर करती है, लेकिन पहुंचती कहीं नहीं है।


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